सहस्राब्दि अंक-२८
इक्कीसवीं सदी की हिन्दी कविता' पर केन्द्रित विशेषांक
**अवधि:** जनवरी-दिसम्बर २०२५
**सम्पादक:** प्रो. राजेश कुमार गर्ग
**प्रकाशक:** हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
परिचय (About 'Madhyam' Journal)
माध्यम (Madhyam) 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग' द्वारा प्रकाशित एक 'Peer Reviewed Referred Research Journal' है, जो साहित्य और रचनात्मक विचारों को समर्पित है।
इतिहास:
पत्रिका का साहित्यिक प्रवेश पहली बार १९६४ में हिन्दी के महत्वपूर्ण कवि बालकृष्ण राव के संपादन में हुआ था। १९६९ में प्रकाशन बंद होने के बाद, २००१ में सत्यप्रकाश मिश्र जी के सहयोग से इसका पुनर्प्रकाशन शुरू हुआ। दुर्भाग्यवश, २००७ के बाद यह पुनः बंद हो गई।
पुनर्प्रकाशन और वर्तमान अंक:
अब २०२५ में, यह पत्रिका सहस्राब्दि अंक-२८ के रूप में 'इक्कीसवीं सदी की हिन्दी कविता' पर केंद्रित विशेषांक के साथ पुनर्प्रकाशित हुई है।
लक्ष्य:
इसका उद्देश्य न केवल साहित्य की समृद्ध विरासत का पुनस्मरण करना है, बल्कि साहित्य जगत में नवीन विमर्शों और बहसों को स्थान देना भी है।
सम्पादक: प्रो. राजेश कुमार गर्ग, हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय।
आलेख प्रेषण हेतु Email: madhyampatrikaprayagraj@gmail.com
अनुक्रमणिका (Table of Contents)
- भूमिकापृष्ठ: ३
- इक्कीसवीं सदी में हिन्दी कविता की अर्थभूमि (प्रो. रामआह्लाद चौधरी)पृष्ठ: ०८
- इक्कीसवीं सदी की हिन्दी कविता का स्वरूप (प्रो. किश्वर सुल्ताना)पृष्ठ: १७
- इक्कीसवीं सदी की हिन्दी कविता में स्त्री अस्मिता के प्रश्न (डॉ० विजयलक्ष्मी)पृष्ठ: ७६
- इक्कीसवीं सदी की आदिवासी कविता (प्रो. शिवप्रसाद शुक्ल)पृष्ठ: ९९
- ...और भी आलेख इस अंक में शामिल हैं।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग
राष्ट्रीय महत्त्व की संस्था: हिन्दी भाषा और साहित्य को समर्पित
स्थापना एवं स्थिति
स्थापना दिवस: १ मई, १९१० ई. (नागरी प्रचारिणी सभा के तत्वावधान में)
मुख्यालय: सम्मेलन मार्ग, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
वैधानिक मान्यता: संसद के अधिनियम (The Hindi Sahitya Sammelan Act, 1962) द्वारा घोषित
प्रमुख उद्देश्य और कार्य
- ✓हिन्दी भाषा, साहित्य और देवनागरी लिपि का व्यापक प्रचार-प्रसार करना।
- ✓हिन्दी भाषा के विकास और समृद्धि को सुनिश्चित करना, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद ३५१ में निर्दिष्ट है।
- ✓हिन्दी साहित्य में अनुसंधान और अध्ययन को बढ़ावा देना।
- ✓हिन्दी लेखकों और विद्वानों को पुरस्कारों (जैसे मंगलाप्रसाद पारितोषिक) द्वारा प्रोत्साहित करना।
- ✓पुस्तकालय, छापाखाना और संग्रहालय जैसी सुविधाओं का संचालन करना।
मुख्य विभूतियाँ
महामना मदन मोहन मालवीय
प्रथम अध्यक्ष
पुरुषोत्तम दास टंडन ('सम्मेलन के प्राण')
प्रथम प्रधान मंत्री